Friday, 23 May 2014

तुम्हारा साथ

लगता ऐसे ,जैसे
कल की ही बात है ,
तुमने थामा मेरा हाथ है ,
और चल पड़े, उस सफ़र को
जिसका नाम "जीवन का साथ" है
सफ़र में कई पड़ाव आए
ज़िन्दगी के समुन्दर में
लहरों जैसे उतार-चढाव आए
अनगिनत खुशियों के सैलाब आए
कभी संग अपने
मन-मुटाव भी लाए,....
            पर
तैरकर हमने संग
अबतक के सफ़र को पार लगाए,.......
बस यूँ ही थामे रखना
अभी ज़िन्दगी के कई पड़ाव आएंगे
कभी हमें मज़बूत
कभी कमज़ोर बनाएँगे
ऐसे पल में
एक -दूजे का साथ
हौंसला दे जाएँगे
और हम संग यूँ ही
ये जीवन साथ बिताएंगे ........

Saturday, 17 May 2014

उधेरबुन

अपने ही विचारों में
विचर रही हूँ
चेतन- अचेतन में
खुद को ढूंढ रही हूँ ,
जब पा लेती हूँ ,
ख़ुद को ,
तो जी लेती हूँ
कभी ,सबकुछ अनदेखा कर
आँखें मूँद लेती हूँ ......
हो गए हैं , बेतरतीब से
कुछ पन्ने ज़िन्दगी के ,
उन्हें सहेजने की
कोशिश करती हूँ ......
हर पन्ने का अपना हिस्सा ,
हर हिस्से का अपना किस्सा,
खुद को सुनाकर,
खुद को समझाकर
एक कहानी बुन लेती हूँ
बस यूँ ही
अपने विचारो में
विचर लेती हूँ.........

डोर

जीवन की डोर
नहीं है कमज़ोर
ग़र जीने का हो
हौंसला पुरजोर.......
कभी हँसकर , कभी रोकर
कभी मचा कर शोर
करता हर इंसा
अपनी कोशिश, लगाता अपना ज़ोर.....
 फ़िर सब छोड़
इसी जीने में
लग जाती है
आगे बढ़ने की होड़........
जो रख देता है
हम इंसा को तोड़ मरोड़......
ऐसे ही किसी लम्हे में
कहता कोई
जीवन की डोर ,बहुत कमज़ोर...
                पर
जीवन की डोर ,नहीं कमज़ोर
बस हो ग़र ,सही दिशा मे
उसकी बागडोर..............