Saturday, 21 December 2013

कुछ --दूरी

एक नभ और दोस्त इसके इतने सारे ,
अटल ,अडिग दोस्त सच्चे
सूरज , चाँद , सितारे,......
सोचती हूँ मन मे
बात ये हमेशा
जब संग रहते हैं ये सारे
तो क्यूँ दिखते हैं
कुछ अलग- अलग
कुछ दूर -दूर ?
      फिर भी
क्या है इसमें ऐसा
जो ये हरपल रह पाता
 ऐसा सच्चा!
न दोस्तों से कभी
टूटी इसकी दोस्ती
न हुई कभी लड़ाई
वाह रे दोस्ती !
 मैं भरपाई........
असमंजस में देख मुझे , शायद
उसने कौतूहल को मेरे समझ लिया था ,
और हौले से उसने मुझे कहा था
               देख  मुझे गौर से
तू खुद समझ जाएगी
अपने इस "सोच-जाल " से मुक्ति पाएगी
नभ को फिर देखा मैंने
नए सिरे से फिर
दोस्तों को परखा मैंने ,
  और सहसा
हुआ मुझे ज्ञान जैसे
"सोच -जाल " से मुक्ति
मिला कोई वरदान ऐसे
               दूरी
हाँ बस कुछ दूरी
यही है प्रगाढ़, सुदृढ़ ,अटल
    मैत्री का राज
जैसे दूर होकर भी एक
      दिन और रात
ये हैं ऐसे मित्र
जो न पाते  कभी मिल
इसलिए शायद इनकी मैत्री
  है चिर नवीन.......
  अगर आ जाये
ये भी पास
तो हो जाये बासी
इनके भी एहसास
इसलिए दूर हैं ये
अपने में मसरूफ हैं ये
और देते हैं
चिर मैत्री का
मूलमंत्र ये
      दूरी
हाँ बस कुछ दूरी .............




4 comments:

  1. sach hai ye bilkul sach

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  2. Bahut khoobsurti se kahi hai ye baat. loved it

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  3. YES INDEED THAT LITTLE DISTANCE IS THE 'SECRET' OF THE DEPTH OF RELATIONSHIPSE ITS THE SAME CRITICAL DISTANCE THAT EXISTS BETWEEN THE ELECTRONS IN THEIR ORBIT AS ALSO THE SOLAR SYSTEM ITSELF ! VERY WELDONE FOR THIS GREAT UNDERSTANDING !! KEEP IT UP !!!!!

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