कहीं कुछ दब गया था
दुनियादारी की सांठ- गाँठ में
एक धागा कहीं उलझ गया था
गाँठ सी लग गयी थी
सारी भावनाए उलझ गयी थी
अब
पुनः गाँठ खुल गयी है
भावनाए मचल गयी हैं
बहने लगी है शब्दों की धार
जिसे दिया था
कहीं मैंने मार........
अभी लेखनी चल पड़ी है
सृजन ही सृजन है
ज़िन्दगी दे दे कुछ पल मुझे
अपनी लेखनी के साथ उधार .......
दुनियादारी की सांठ- गाँठ में
एक धागा कहीं उलझ गया था
गाँठ सी लग गयी थी
सारी भावनाए उलझ गयी थी
अब
पुनः गाँठ खुल गयी है
भावनाए मचल गयी हैं
बहने लगी है शब्दों की धार
जिसे दिया था
कहीं मैंने मार........
अभी लेखनी चल पड़ी है
सृजन ही सृजन है
ज़िन्दगी दे दे कुछ पल मुझे
अपनी लेखनी के साथ उधार .......
bas ab is ganth ko ulajhne mat dena. keep writing Anu
ReplyDeleteOh great; life finds its own meaning but due to shifting goalposts- its meaning keeps evolving itself and many a times the thinking pause may be understood or misunderstood as the 'gantha' !!
ReplyDeletejab jago tabhi savera........bas apne vicharo ko likhte rahiye. Ab sunder suljhe vichar nahi uljhege
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