Wednesday, 22 January 2014

हालात

नजदीकियों से भी कभी
बढ़ जाती है दूरियाँ
और दूरियों से नजदीकियाँ.......
क्या पता कब किस
इन्सान की होती है
क्या मजबूरियाँ?
कभी बन जाते हैं
ऐसे हालात
नहीं मिलते कभी ,ज़ज़्बात
साथ रहकर भी होती हैं
साथ हमारे, हमारी तन्हाइयां..........
उम्र गुज़ार देते हैं
दूरियों के साथ
कुछ मजबूरियों के साथ
और वक़्त लेता रहता है
यूँ ही अंगराईयाँ.........
कर समझौता
मानते हैं उसकी हर चुनौतियाँ
और करते हैं सब
वक़्त के साथ  अठखेलियाँ........


4 comments:

  1. sahi kaha hai. Apki kalpana aur yathath ki tulna bahut achi hai.......Babita

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  2. ITS ALL FROM THE 'HEAD' ACTUALLY , WHEN WE LOOK AT IT WE FIND MOST OF THE LIFE IS LIVED IN IMAGINATION AND MUCH LITTLE IN REALITY !!

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  3. hum sab ke jeevan ka sach.......lovely composition as always

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