Saturday, 17 May 2014

डोर

जीवन की डोर
नहीं है कमज़ोर
ग़र जीने का हो
हौंसला पुरजोर.......
कभी हँसकर , कभी रोकर
कभी मचा कर शोर
करता हर इंसा
अपनी कोशिश, लगाता अपना ज़ोर.....
 फ़िर सब छोड़
इसी जीने में
लग जाती है
आगे बढ़ने की होड़........
जो रख देता है
हम इंसा को तोड़ मरोड़......
ऐसे ही किसी लम्हे में
कहता कोई
जीवन की डोर ,बहुत कमज़ोर...
                पर
जीवन की डोर ,नहीं कमज़ोर
बस हो ग़र ,सही दिशा मे
उसकी बागडोर..............

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