Friday, 8 November 2013

उलझन

कई उत्तर कई बार
स्वयं प्रश्न बन जाते हैं,
हमें शब्दों में उलझाते हैं,
हम उत्तर वही ढूँढ़ते हैं
जो हमारे मन को भाते हैं,
कभी ज़िन्दगी के प्रश्नों को
अनदेखा किया करते हैं ,
कभी सुलझे उत्तरों से
कई सवाल बनाये जाते हैं,
चाहत क्या है अपनी ?
कभी अपने दिल कभी दिमाग
से पूछते रहते हैं.
क्या जायज़ क्या नाजायज़
यही पृष्ठ पलटते रहते हैं....
निष्कर्ष कभी हमेंसुलझा
कभी और उलझा जाते हैं
शुरू होता है जो
एक प्रश्न से ,
वो कई प्रश्नचिन्हों पर
जाकर अटक जाते हैं
सारे प्रश्न , सारे उत्तर
होते हमारे सामने भी
हम कुछ समझ
नहीं पाते हैं
        किन्तु
ज़िन्दगी की पाठशाला
सारे प्रश्नोत्तर
हमे अपने काल -चक्र में
समझा जाते हैं .........

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