Monday, 6 November 2017

सैनिक की पत्नी

मैं सैनिक की पत्नी हूँ
मैं सबकुछ संभालती हूँ
सम, विषम हर परिस्थितियों में
मैं मुस्काती हूँ।
देश की सीमा 'ये' संभाले
मैं घर की सीमा संभालती हूँ
माँ के संग, पिता की भी
भूमिका बखूबी निभाती हूँ।
सास ,ससुर को न खले
कमी बेटे की
हर पल ये ध्यान रखती हूँ
बहु संग बेटा बन
सारे कर्तव्य निभाती हूँ।

रहते जब सीमा पर 'ये'
सब कुशल है
सब कुशल होगा
की कामना से
उम्मीदों की दीप जलाती हूँ
पर नारी मन जब घबराता
एक अनजाने भय से डरता
नमी अपनी आँखों की छुपा सबसे
एक मुस्कुराहट ओढ़ लेती हूँ
सैनिक की पत्नी
वामा उनकी,मैं उनकी अर्धांगनी
कैसे मैं कायर बन सकती हूँ?
सोच से ऐसे
खुद की हिम्मत बनती हूँ
'उनको' हिम्मत देती हूँ।
घर बाहर दोनों सम्भालती
'मेरी चिन्ता छोड़ो'
ऐसा कहकर 'उनको'
सारी घर की परेशानियों से मुक्त रखती हूँ
मैं सैनिक की पत्नी
मैं सब सम्भाल लेती हूँ।

नहीं होता आसान
सैनिक का खानाबदोशी जीवन
संग उनके बन सहगामिनी,सहचरी
पहाड़,जंगल, रेगिस्तान
सब मैं भी भटकती हूँ
नहीं ढूंढती मैं
भोग विलासिता
जंगल मे मंगल कर लेती हूँ!
कच्चे-पक्के, टूटे- फूटे
मकान को भी
घर बना लेती हूँ
मैं सैनिक की पत्नी हूँ
मैं सब कुछ सम्भालती हूँ
इसलिए अपने वीर पति की
वीरांगना गर्व से कहलाती हूँ।।।।

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