Tuesday, 1 October 2013

मुक्तिबोध

हमारी इन्द्रिय,
हमारा मन,
हमारी बुद्धि,
हमारी आत्मा,
और ,सर्वोपरि परमात्मा,
चक्रव्यूह मे इनके
पूरी विश्व है लिप्त,
किसकी है आत्मा तृप्त?
हर सतहों पर
प्रश्नों का अथाह समुद्र
जिसे पार करने मे लगा
      हर मनुष्य.
होड़ लगी है
आगे-पीछे
जन्म-जन्मान्तर सुधारने को ,
कितनो ने ही पढ़ी गीता ,
और गाया रामायण को ,
पर उसे ही मिली मुक्ति
जिसने नर मे देखा
   नारायण को ........

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