डलती है नींव, बचपन में,
सच- झूठ की
फिर ऊम्र के साथ
बढता है हमारा दायरा
और
बातें करते हैं हम
पाप- पुण्य की
धर्म -अधर्म की
कर्म -अकर्म की
पर
क्या करने से बातें
मिलती है शांति मन की?
क्या धर्म क्या अधर्म है ?
जीवन में कई
अनसुलझे मर्म हैं
जिसे करने से हो
मन हर्षित ,पुलकित
मेरे लिए तो बस
वही सच्चा कर्म है .........
सच- झूठ की
फिर ऊम्र के साथ
बढता है हमारा दायरा
और
बातें करते हैं हम
पाप- पुण्य की
धर्म -अधर्म की
कर्म -अकर्म की
पर
क्या करने से बातें
मिलती है शांति मन की?
क्या धर्म क्या अधर्म है ?
जीवन में कई
अनसुलझे मर्म हैं
जिसे करने से हो
मन हर्षित ,पुलकित
मेरे लिए तो बस
वही सच्चा कर्म है .........
hame vahi karna chahiye jo hamara dil kare..........
ReplyDeleteSo true
ReplyDeletebahut sahi hai.......
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