Wednesday, 30 October 2013

कर्म

डलती है नींव, बचपन में,
सच- झूठ की
 फिर ऊम्र के साथ
बढता है हमारा दायरा
             और
बातें करते हैं हम
 पाप- पुण्य की
धर्म -अधर्म की
कर्म -अकर्म की
          पर
क्या करने से बातें
मिलती है शांति मन की?
क्या धर्म क्या अधर्म है ?
जीवन में कई
अनसुलझे मर्म हैं
जिसे करने से हो
मन हर्षित ,पुलकित
मेरे लिए तो बस
वही सच्चा कर्म है ......... 

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