बरसों पहले
देख जलते दीपक को
कह बैठी थी मैं, उससे
तू तो मेरा साथी है
तू भी जलता
मैं भी जलती
तो , चल मैं भी
तेरे संग चलती.....
तनिक व्यंग्य से कहा था , उसने
तू हांड- मांस का मनुष्य
सुख -वैभव का है भोगी
जलना मेरी है नियति
क्या जलने की पीड़ा
तुझे सहन होगी?
तब हँसने की थी , बारी मेरी
कहा था मैंने हंसकर उससे ,
तेरा जलना तेरा मोक्ष है
पर मेरा जलना ?
मेरी नियति
पर दोनों का साम्य यही
तुझे जलाता है कोई
और मैं घुट -घुट जलती ...........
आज
बरसों बाद ,फिर
हम दोनों आमने -सामने हैं
मेरे सामने ज़िन्दगी के कई
सुलझे मायने हैं......
देख मुझे
पूछा दीपक ने मुझसे
क्या अब भी तू मेरा साथी है?
क्या अब भी तू संग मेरे
चलने को राज़ी है?
हँसकर कहा मैंने
हाँ चल ले चल
अपने संग मुझको
अब मैं जान गयी हूँ खुदको
परिपक्व हो गयी हूँ मैं
घुटन और यथार्थ के
बीच की लकीर को
समझ गयी हूँ मैं
अपने अँधेरे कोने में भी
रौशनी फैला रही हूँ मैं
जलकर भी तेरी तरह
हँसना सीख गयी हूँ मैं
साम्य अब भी
दोनों की है वही
पर बस
मेरी सोच नयी ................
देख जलते दीपक को
कह बैठी थी मैं, उससे
तू तो मेरा साथी है
तू भी जलता
मैं भी जलती
तो , चल मैं भी
तेरे संग चलती.....
तनिक व्यंग्य से कहा था , उसने
तू हांड- मांस का मनुष्य
सुख -वैभव का है भोगी
जलना मेरी है नियति
क्या जलने की पीड़ा
तुझे सहन होगी?
तब हँसने की थी , बारी मेरी
कहा था मैंने हंसकर उससे ,
तेरा जलना तेरा मोक्ष है
पर मेरा जलना ?
मेरी नियति
पर दोनों का साम्य यही
तुझे जलाता है कोई
और मैं घुट -घुट जलती ...........
आज
बरसों बाद ,फिर
हम दोनों आमने -सामने हैं
मेरे सामने ज़िन्दगी के कई
सुलझे मायने हैं......
देख मुझे
पूछा दीपक ने मुझसे
क्या अब भी तू मेरा साथी है?
क्या अब भी तू संग मेरे
चलने को राज़ी है?
हँसकर कहा मैंने
हाँ चल ले चल
अपने संग मुझको
अब मैं जान गयी हूँ खुदको
परिपक्व हो गयी हूँ मैं
घुटन और यथार्थ के
बीच की लकीर को
समझ गयी हूँ मैं
अपने अँधेरे कोने में भी
रौशनी फैला रही हूँ मैं
जलकर भी तेरी तरह
हँसना सीख गयी हूँ मैं
साम्य अब भी
दोनों की है वही
पर बस
मेरी सोच नयी ................
so positive.
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