Friday, 11 August 2017

तिरंगे की व्यथा

हर नुक्कड़ ,हर चौराहे पर
दिखने और बिकने लगा हूँ
देशभक्ति के गानों में
खुद को सुनने लगा हूँ।
Tv पर हो रहे चर्चे मेरे
देशभक्ति की बातों से है
अख़बारों के पन्ने भरे,
Social sites मे
लोगो की छवि के ऊपर
मैं छाने लगा हूँ
इन दिनों मैं भी
Viral होने लगा हूँ।

आती है याद मेरी,लोगों को
स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर
छलकता है प्यार,मुझे नुमाइश बनाकर
लोगो के बालों और गालों पर सजने लगा हूँ
और सामानों के साथ दिखने और बिकने लगा हूँ
आज के युग पटल पर
एक नुमाइश का सामान बनकर रह गया हूँ।

I love my India
कहकर बस जागती देशभक्ति
क्रिकेट के match में मैं
सबसे ज्यादा दिखने और बिकने लगा हूँ।

शहीदों के देह से
 लिपटकर जब मैं आता हूँ
रोता हूँ फिर भी
 खुद को स्वाभिमानी पाता हूँ
बहुत व्यथित होता हूँ मैं
रोड पर पड़ा जब
खुद को देखता हूँ
कभी पैरों से भी
कुचला जाता हूँ
कभी कचड़े में पाया जाता हूँ।

केसरिया और हरे रंग से मिलकर बना हूँ
फिर भी धर्म के विवादों से मैं नहीं घिरा हूँ।
रंगों के विवाद पर
नदियों के निनाद पर
होती राजनीति रोज़ देखता हूँ
देशभक्ति की आड़ में
नेताओ को खुद से छलते देखता हूँ।

मेरी बस एक गुजारिश सबसे
रखो जज्बा देशभक्ति का दिल से
बस हाथ में तिरंगा लेना काफी नहीं
अहमियत इसकी पूछो खुद से
देश के अंदर न रौंदो न जलाओ मुझे
नहीं सही जाती ये पीड़ा मुझसे
सात दशकों से देख रहा हूँ
अब मैं भी बुज़ुर्ग हो चला हूँ।

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