कहीं से भी आ जाती है ख्वाहिशें
कोई सा भी रूप ले लेती ख़्वाहिशें
कभी बन तितली
खूबसूरत मीठे पराग चुराती
शहद सी मीठी,ख्वाब दिखाती ख़्वाहिशें।
कभी बन पँछी
किसी भी ओर उड़ती
कभी इस डाल, कभी उस डाल
बैठती ये ख़्वाहिशें।
ऊँचे पेड़ सी बढ़ जाती
फैलाती रहती हैं शाखाएँ अपनी
फैलती,फूलती,टूटती रहती
लगती पेड़ो सी ये ख़्वाहिशें।
बादलों सी हल्की- फुल्की
इधर-उधर घूमती
बिन आकार,बिन रूप संवरती
फिर कभी बरसती सी ये ख़्वाहिशें।
कभी सागर सी मचलती
कभी शांत नदी सी
पर निरंतर पानी सी बहती, ये ख़्वाहिशे।
कभी बिंदी बन,तारों सी सजती
कभी काजल सी फैलती
स्याह सी ये ख़्वाहिशें।
हर एक के आँखों में सजती
बचपन से बुढ़ापे तक मचलती
बनकर बोन्साई भी
हर दिल में उगती ये ख़्वाहिशें।
कोई सा भी रूप ले लेती ख़्वाहिशें
कभी बन तितली
खूबसूरत मीठे पराग चुराती
शहद सी मीठी,ख्वाब दिखाती ख़्वाहिशें।
कभी बन पँछी
किसी भी ओर उड़ती
कभी इस डाल, कभी उस डाल
बैठती ये ख़्वाहिशें।
ऊँचे पेड़ सी बढ़ जाती
फैलाती रहती हैं शाखाएँ अपनी
फैलती,फूलती,टूटती रहती
लगती पेड़ो सी ये ख़्वाहिशें।
बादलों सी हल्की- फुल्की
इधर-उधर घूमती
बिन आकार,बिन रूप संवरती
फिर कभी बरसती सी ये ख़्वाहिशें।
कभी सागर सी मचलती
कभी शांत नदी सी
पर निरंतर पानी सी बहती, ये ख़्वाहिशे।
कभी बिंदी बन,तारों सी सजती
कभी काजल सी फैलती
स्याह सी ये ख़्वाहिशें।
हर एक के आँखों में सजती
बचपन से बुढ़ापे तक मचलती
बनकर बोन्साई भी
हर दिल में उगती ये ख़्वाहिशें।
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