Thursday, 24 August 2017

शब्द और तुम

मैं तो यूँ ही शब्दों को लिखती हूँ
क्यूँ बीच में आ जाते हो तुम?
फ़ैल जाते हो कागजों पर
बन कर एहसास
दिखने लगते हो,
धड़कनो की लय में
बजने लगते हो।
तुम्हारा मौन,तुम्हारी चुप्पी
भी तो वाचाल हैं
कितनी कहानियाँ सुना जाती हैं
कानों में धीरे से
तुम्हारा दर्द गुनगुना जाती है
और फिर फ़ैल जाती है
कागज़ पर
मेरी लेखनी फिर कहाँ
संभाल पाती है!!


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