Friday, 10 August 2018

जाग कविता

तू जाग कविता,
इस भारत का कर दे कुछ उद्धार
निकाल कवियों की लेखनी से
तू ही कुछ उदगार,
सुसुप्त पड़े भावों में
शब्दों से भर दे तू झनकार
तू जाग कविता
इस भारत का कर दे कुछ उद्धार।
न लिख अभी तू सौंदर्य श्रृंगार
न बातें कर मीठी चार
बन लेखनी "दिनकर" सी
फूँक राष्ट्र प्रेम अपार!
जीवित हो "गुप्त जी"  की रचना सी
फूँक जन- जन में नव संचार।
तू जाग कविता
इस भारत का कर दे कुछ उद्धार।
देख मचा चहुँ ओर देश में
कहीँ हाहाकार, कहीँ चित्कार
कहीं हत्या,कहीं बलात्कार
कलम की ताकत में होती धार
बन कलाम से तू हथियार
कर विसंगतियों पर अपना वार!
तू जाग कविता
अब भारत का कर दे कुछ उद्धार।
"वसुधैव कुटुम्बकम" की धरती भारत
नहीं चाहिए यहाँ घृणा, द्वेष प्रसारक
गीत- वंदेमातरम हो यहाँ
जन जन का उद्गार!
तू जाग कविता
इस भारत का कर दे कुछ उद्धार।
लिख जा कुछ स्वर्णिम
सूर्य सा तेज़,रक्तिम
चिड़ियों की कलरव सा मधुर गान
हो जिससे इस भारत का सम्मान
कलम को बना अब तलवार
शब्दों से पैदा कर दुर्गा,चंडी का अवतार
कविता तू अपने शब्दों से फैला प्यार
नई चेतना,नव संचार
नूतन युग का कर विस्तार
तू जाग कविता
इस भारत का कर दे कुछ  उद्धार
कर दे कुछ उद्धार!!







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