मेरी नई अंकुरित कविता
किसने किया सृजन तेरा ?
बीज तो बरसो से डला था
किसने प्रेम की बूंदे डाली ?
कैसे फल फूल रही तू
और महका रही
अस्तित्व मेरा ?
बता ना मेरी अंकुरित कविता
किसने किया सृजन तेरा ?
खिल खिल कर , महक महक कर
बोली मेरी कविता
जैसे एक पंछी बो जाता है
बीज कई जाने अनजाने.
पड़ी रहती है वो धरती पर
जब तक बारिश की बूंदे
ना आए उन्हें सह्लाने
ओर फिर एक बूँद ही है पर्याप्त
जिससे होती है
एक नयी उत्पति
एक नया सृजन
मुझे भी मिली वो
प्रेम- बूँद
ओर मैं भी बन गयी
एक जीवन
एक अंकुरित कविता
किसने किया सृजन तेरा ?
बीज तो बरसो से डला था
किसने प्रेम की बूंदे डाली ?
कैसे फल फूल रही तू
और महका रही
अस्तित्व मेरा ?
बता ना मेरी अंकुरित कविता
किसने किया सृजन तेरा ?
खिल खिल कर , महक महक कर
बोली मेरी कविता
जैसे एक पंछी बो जाता है
बीज कई जाने अनजाने.
पड़ी रहती है वो धरती पर
जब तक बारिश की बूंदे
ना आए उन्हें सह्लाने
ओर फिर एक बूँद ही है पर्याप्त
जिससे होती है
एक नयी उत्पति
एक नया सृजन
मुझे भी मिली वो
प्रेम- बूँद
ओर मैं भी बन गयी
एक जीवन
एक अंकुरित कविता
Good to see you alive once again with your creativity.....don't let this anukaran dry out in desert
ReplyDeletesure. i will try ......
Deletethanks.
wow! anu, very very nice! as the person above have said u've a beautiful talent, nourish it....ankurit karte rahiye..........
ReplyDeleteAnu good work. keep it up
ReplyDeleteonly a blade of grass realizes the value of a drop of dew , that even the drop of dew doesn't know ! live life full !!
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