यथार्थ की कटुता
कल्पना की मधुरता ,
मन की चंचलता
प्रेम की मादकता
कहाँ संजोऊ? कहाँ समेटू मैं?
इस रिश्ते की प्रगाढ़ता?
मन की अधीरता
बन जाती है
कल्पना की जीवन्तता
पर
यथार्थ की सजीवता
से भी सजीव है
प्रेम की परिपूर्णता........
कल्पना की मधुरता ,
मन की चंचलता
प्रेम की मादकता
कहाँ संजोऊ? कहाँ समेटू मैं?
इस रिश्ते की प्रगाढ़ता?
मन की अधीरता
बन जाती है
कल्पना की जीवन्तता
पर
यथार्थ की सजीवता
से भी सजीव है
प्रेम की परिपूर्णता........
मनमोहक...सुन्दर !
ReplyDeleteअच्छी है.
ReplyDeleteGreat Thoughts .... But love is always casualty to reality and kalpana
ReplyDeletebahut khoob......
ReplyDeleteNo wonder it is believed that LOVE is GOD himself but then may be lust is an error to gods existence.
ReplyDeleteprem ki pari purnata insano me nahi ho sata....... wo sirf ishwar ke saath sambhav hai.........
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