Friday, 18 October 2013

रिश्ता -एक ज़ेवर

होते हैं रिश्ते जेवर  की तरह
जिन्हें हम सँभालते हैं
धरोहर की तरह
कभी पहनते ज्यादा
किसी जेवर को ,
कभी सम्भाल कर रख देते हैं ,
बस कभी नज़र भर देख
उसे संजो  कर रख लेते हैं ,
लद जाते हैं कभी ,
जेवरों के बोझ तले
फिर भी पहनते रहते हैं ,
दिखाते हैं अपनी संपूर्णता
और उसे झेलते रहते हैं ,
कभी असली ,कभी नक़ली
जेवरों को ढ़ोते फिरते हैं
कभी किसी मनपसन्द जेवर से
खुद को सँवारकर
ज़िन्दगी सजा लेते हैं,
कभी किसी जेवर को
बंद कर तिजोरी मे
ऊम्र गुजार देते हैं.......

7 comments:

  1. ले....हम तो जेवर को देवर समझकर पढ़े थे......वैसे जेवर में भी अच्छा लगा...

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  2. ornaments and relationships........ wow! never thought of it before........... lovely comparison Anu!

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  3. Lovely ........loved it

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  4. Excellent. Never thought of this comparison..loved it

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  5. Wow wow wow.what imagination!!!

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  6. Bahoot khoob

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