Saturday, 26 October 2013

अंतर्सुर


अक्सर हम
अनसुनी कर देते हैं
अपनी अंदरुनी  आवाज़ को ,
बना लेते हैं ,अपना संगीत
दुनियादारी के राग को .........
मिलाते रहते हैं अपना सुर
सबके सुरों के साथ ,
और बजाते रहते हैं
उनके ही साज़  को .....
देते हैं तसल्ली खुद को ,गाकर
"यही है ज़िन्दगी ,यही है दुनियादारी
जिसे निभाने में ही है समझदारी "
और बस आलापते रहते हैं
इसी आलाप को ......
डूबे रहते हैं हम
रोज़मर्रा के रियाज़ो में
और भूल बैठते हैं
अपने ही उद्गार को ,
कभी निकल जाती है
उम्र कभी सदियाँ
सुनने में अपने ही
दिल की आवाज़ को
सुन लेते हैं जिस दिन
अपनी अंदरुनी आवाज़ को
निकल पड़ती है सरगम
और समझ जाते हैं हम
अपने अंतर्मन के सुर- ताल को
और चल पड़ते हैं
एक नए आग़ाज़ को .........

5 comments:

  1. bahut sundar bahut sahi

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  2. Bhabhi its so beautiful and so true and its not something none of us know but all are so bound by society and its norms and strictures we are scared to break free.

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  3. So true.simply loved it

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  4. Sabke dil ki baat hoti hai aapki kavitao main.aur yahi lekhni ki safalta hai.

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