अनुपम सुंदरता लिए
अपने रूप यौवन पर हर्षित
इस सुन्दर वादी को
किसकी नज़र लग गयी
लम्बे ,गगनचुम्बी
चीर, देवदार, चिनार
सब की सुंदरता
किस को खल गयी!
झेलम की कलकल निनाद
है आज भयाक्रांत
पता नहीं धार इसकी भी
बाँट न ले,कोई कहीं
हलचल इसके सीने में भी मच गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी!
श्वेत हिम आच्छादित पर्वत
लाल से दिखने लगे
शहीदों के खून संग
ये भी जमने लगे
कौन अपने कौन पराये
नज़र सबकी तंग हो गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी
रब ने बनाकर यह जन्नत
कुछ इंसान बसाया था
मजहब का पाठ पढ़
नफरत की लहर बह गई
इंसानियत वहशियत में बदल गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी
लालसा ,राजस्व ,लोभ ,पिपासा
चिनार,देवदार से भी ऊँची हो गयी
जन्नत बनी ये घाटी
आहिस्ता आहिस्ता
जहन्नुम में परिवर्तित हो गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी
खिले मनोरम फूल जहाँ
फलों और केसर की महक वहाँ
उस केसरिया रंग में
रंग कुछ नफरत की भी है घुल गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी!
मुलायम बर्फ सी, निष्कपट सी
थी यहाँ की सर जमीं
अखरोट भी जहाँ मुलायम और कागज़ी
वहाँ बर्बरता, पाखंडता, लालच है मची
कौन है महफूज़ यहाँ
कहाँ है सबकी ख़ुशी
बस इसी बहस में
चलती जायेगी ये ज़िन्दगी
यूँ ही बन जायेगी जहन्नुम
ये हमारी जन्नत दिलकशी.....
अपने रूप यौवन पर हर्षित
इस सुन्दर वादी को
किसकी नज़र लग गयी
लम्बे ,गगनचुम्बी
चीर, देवदार, चिनार
सब की सुंदरता
किस को खल गयी!
झेलम की कलकल निनाद
है आज भयाक्रांत
पता नहीं धार इसकी भी
बाँट न ले,कोई कहीं
हलचल इसके सीने में भी मच गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी!
श्वेत हिम आच्छादित पर्वत
लाल से दिखने लगे
शहीदों के खून संग
ये भी जमने लगे
कौन अपने कौन पराये
नज़र सबकी तंग हो गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी
रब ने बनाकर यह जन्नत
कुछ इंसान बसाया था
मजहब का पाठ पढ़
नफरत की लहर बह गई
इंसानियत वहशियत में बदल गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी
लालसा ,राजस्व ,लोभ ,पिपासा
चिनार,देवदार से भी ऊँची हो गयी
जन्नत बनी ये घाटी
आहिस्ता आहिस्ता
जहन्नुम में परिवर्तित हो गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी
खिले मनोरम फूल जहाँ
फलों और केसर की महक वहाँ
उस केसरिया रंग में
रंग कुछ नफरत की भी है घुल गयी
पता नहीं इस वादी को
किसकी नज़र लग गयी!
मुलायम बर्फ सी, निष्कपट सी
थी यहाँ की सर जमीं
अखरोट भी जहाँ मुलायम और कागज़ी
वहाँ बर्बरता, पाखंडता, लालच है मची
कौन है महफूज़ यहाँ
कहाँ है सबकी ख़ुशी
बस इसी बहस में
चलती जायेगी ये ज़िन्दगी
यूँ ही बन जायेगी जहन्नुम
ये हमारी जन्नत दिलकशी.....
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