Tuesday, 18 July 2017

कई बार

कई बार चाहा
कितना कुछ कहना
पर नहीं कह पाती
शब्द,जुबाँ तक आते नहीं,
पता नहीं ,क्यूँकर
बेजुबान हो जाते हैं।
ठहर से जाते हैं,
आँखों से भी
बयाँ कहाँ हो पाते हैं!
झिझकते हैं
पता नहीं किससे
शब्द शायद
बन न जाए किस्से
धड़कन के आरोह अवरोह
में बजता संगीत
अंदर ही अंदर
सुनती हूँ
नहीं गा पाती
नहीं कर पाती लयबद्ध
कुछ अकथ बात
एक नारी के जज्बात
दब जाते हैं,
अपने ही
धड़कनों के आरोह अवरोह में
सुरबद्ध होने को
लयबद्ध होने को.......

No comments:

Post a Comment