Wednesday, 29 March 2017

चाँद

चाँद की चाँदनी ने
किसे नहीं लुभाया है
चाँद ओ चाँद
तू सबके मन को भाया है
बचपन में बन चंदा मामा
सबने तुमसे दूध मलाई खाया है
बादलों संग लुका- छिप्पी खेल
बाल मन में तुमने
अनगिनत प्रश्न उठाया है
यौवन की तो पूछो मत
इसने किसे नहीं बहकाया है?
नीरव,शीतल चाँदनी रात
किस मन को नहीं भाया है
देकर चाँद की उपमा हमने
कितने दिलों को
बहलाया फुसलाया है
कितने प्रेम संबंधों को
इसकी रौशनी ने जलाया है
अपनी सुंदरता से सबको
इसने ललचाया है
कवियों की कल्पना को
इसने और भड़काया है
सागर से भी नहीं अछूता
इसका साया है
चाँदनी रात में सागर की लहरों ने
कितनों का दिल धड़काया है
उफान सागर की
मिलने की चाँद से
तूफ़ान कई लाया है
लोगों को सहमाया है
पर सागर की मुहब्बत है ,चाँद से
वो कहाँ बाज़ आया है
अपनी शीतलता से अगन लगाता
चाँद हाँ सिर्फ चाँद
यह काम कर जाता है.....



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