महावर की थाल में डालकर पैरों को
अपने पदचिन्हों को छोड़ा उसने
सिर्फ दिल ही नहीं
कई रिश्ता जोड़ा उसने
कुछ सहमी कुछ घबराई सी थी
कुछ अपनी कल्पनाओं से
शर्मायी लजायी सी थी
सुबह सवेरे उठकर अपने
लाल महावर के निशान देख रही थी
अपनी जिम्मेदारी के एहसास
को संजो रही थी
कुछ बिखरे सामानों को उठाया उसने
बड़े हक़ से ,अपनी मर्ज़ी से उन्हें सजाया उसने
तभी पीछे आई कहीं
एक ताने की आवाज़
देवी जी इस घर का ,ये नहीं रिवाज़
घर अभी ये मेरा है
नहीं इसपर हक़ तेरा है
सुन इसे वो रो पड़ी
मन ही मन सोच पड़ी
कौन सा पदचिन्ह अपना है
जहाँ पड़े महावर या
जहाँ पड़े थे धमा चौकड़ी के निशान?
कुछ प्रश्न चिन्ह लेकर पदचिन्ह वो
छोड़ आयी जहाँ न मिला उसे मान
कौन सा घर उसका है
और कहाँ है उसका स्थान!
अपने पदचिन्हों को छोड़ा उसने
सिर्फ दिल ही नहीं
कई रिश्ता जोड़ा उसने
कुछ सहमी कुछ घबराई सी थी
कुछ अपनी कल्पनाओं से
शर्मायी लजायी सी थी
सुबह सवेरे उठकर अपने
लाल महावर के निशान देख रही थी
अपनी जिम्मेदारी के एहसास
को संजो रही थी
कुछ बिखरे सामानों को उठाया उसने
बड़े हक़ से ,अपनी मर्ज़ी से उन्हें सजाया उसने
तभी पीछे आई कहीं
एक ताने की आवाज़
देवी जी इस घर का ,ये नहीं रिवाज़
घर अभी ये मेरा है
नहीं इसपर हक़ तेरा है
सुन इसे वो रो पड़ी
मन ही मन सोच पड़ी
कौन सा पदचिन्ह अपना है
जहाँ पड़े महावर या
जहाँ पड़े थे धमा चौकड़ी के निशान?
कुछ प्रश्न चिन्ह लेकर पदचिन्ह वो
छोड़ आयी जहाँ न मिला उसे मान
कौन सा घर उसका है
और कहाँ है उसका स्थान!
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