Friday, 21 April 2017

फ़ोन

माचिस की डिब्बी से बनाया फोन से लेकर
iPhone तक का सफर तय किया है मैंने
फोन तेरे हर बढ़ते,बदलते रूप
को देखा है मैंने
पहले मोहल्ले में एक दो फोन
हुआ करता था
सबका PP No
वही हुआ करता था
फोन के बहाने सबका
आना जाना लगा रहता था,
घर में रौनक बना रहता था
फिर हर घर फोन बजने लगा
दायरा सिमटने लगा।
जबसे तू मोबाइल बन
सबके हाथों में आया है
खुशियों के साथ
गम भी बहुत लाया है
प्यार और शिकायत
 दोनों है तुमसे
क्या कहूँ, क्या न कहूँ तुमसे
हर घर पर कर लिया कब्ज़ा
सब रिश्तों की जगह कर ली है
इख्तियार तुमने......

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