Friday, 21 April 2017

तेरी ख़ामोशी

तेरी ख़ामोशी से ही
बात करती हूँ,
शिकवा उनसे ही तेरी
दिन रात करती हूँ।
एक तरफा ही
सवाल और जवाब करती हूँ,
कभी तुमसे लड़ती और झगड़ती हूँ
कभी बाँहो में भरकर
तुम्हे एहसास कर लेती हूँ।
कभी मनाकर खुद को
अपने को खुश कर लेती हूँ
चाहकर भी तुम्हे
न चाहने का दिखावा कर लेती हूँ
अपनी चाहत का मनगढंत
क़िस्सा रच लेती हूँ।
तुम्हारे हिस्से का भी
किरदार निभा लेती हूँ
खुद को थोड़ा प्यार,कर लेती हूँ
तेरी कल्पना से अपनी
दुनिया रच लेती हूँ
मैं भी जरा औरों की
तरह बस लेती हूँ।
तेरी ख़ामोशियों से ही
बात करती हूँ
शिकवा उनसे ही तेरी
दिन रात करती हूँ
और बस
तेरे होने का एहसास करती हूँ......

No comments:

Post a Comment