Friday, 8 September 2017

तर्पण

दो साल हो गए
आप के बिन
आपकी यादों के संग
लिये कुछ आपकी
इच्छाओ को पूरा
न कर पाने का रंज!

बस इतना ही तो
चाहा था आपने
न छोड़ू मैं
मैं अपनी लेखनी का साथ
पर "लिख रही हूँ"
कहकर टालती गयी
आपकी ये बात।

वक़्त ने ली करवट
लेखनी मेरी हुई मुखर
शब्द रहे कुछ निखर
 भाव नहीं रहे बिखर
सब आपके आशीष का
ही तो है असर।

मिलती जब प्रशंशा कभी
यही लगता है सुनकर
आप होते तो
कितने खुश होते
आप क्या कहते
जब मेरा लिखा पढ़ते!

पर मेरी ये कल्पना
बस कल्पना रह जायेगी
लेखनी मेरी आपकी
मुस्कान देख न पायेगी।

चल रहा अपनों का श्राद्ध तर्पण
बिन जल,तिल, कुश
कर रही मैं
अपनी लेखनी आपको अर्पण
अश्रु पूरित आँखों से
यही मेरा तर्पण !!!
यही मेरा तर्पण !!!

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