कभी कविता
कभी कहानी सी
बनाना चाहती हूँ
शब्दों की तरह बिखेरकर
तुम्हें एक किताब सा
पढ़ना चाहती हूँ!
सर्दियों की गुनगुनी धूप में
हाथों में लेकर तुम्हे
एक कहानी सी
समझना चाहती हूँ
अपनी मन मर्ज़ी
हर्फ़ से सजाकर
अलग अलग पात्रों में
ढालना चाहती हूँ
अपने हाथों से
तुम्हे लिखना चाहती हूँ!
कभी कोहनी ,बिस्तर पर जमाए
हाथों को,गालों पर टिकाए
अपलक तुम्हें देखना चाहती हूँ
कविता सी तुम्हें
महसूस करना चाहती हूँ!
कभी सीने पर
यूँ ही रख
अपनी धड़कन
सुनाना चाहती हूँ!
आँखे बंद हो मेरी
पर तुम्हारे शब्दों पर
मुस्कुराना चाहती हूँ!
न किसी आहट पर
तकिये के नीचे, तुम्हे
छुपाना चाहती हूँ
न जिल्द लगाकर
दुनियाँ की नज़रों से
बचाना चाहती हूँ
तुम शब्द मेरे
तुम्हे दुनियाँ के सामने
लाना चाहती हूँ!
नहीं रखना चाहती
कोई फूल
उस किताब में
जो सूख मुरझा जाये
पुरानी बातों का
एहसास कराए
मैं तो नित नूतन
तुम्हें, कागज़ की खुश्बू सी
महसूस करना चाहती हूँ!
लिख जाना चाहती हूँ
हर एहसास
हर लम्हा
में तुम्हे
कभी छंद बनाकर
गुनगुनाना चाहती हूँ
कभी कहानी में
खो जाना चाहती हूँ
किताब सी तुम्हे
संभालना चाहती हूँ
अपना प्रेम मुखरित
करना चाहती हूँ!!!!
कभी कहानी सी
बनाना चाहती हूँ
शब्दों की तरह बिखेरकर
तुम्हें एक किताब सा
पढ़ना चाहती हूँ!
सर्दियों की गुनगुनी धूप में
हाथों में लेकर तुम्हे
एक कहानी सी
समझना चाहती हूँ
अपनी मन मर्ज़ी
हर्फ़ से सजाकर
अलग अलग पात्रों में
ढालना चाहती हूँ
अपने हाथों से
तुम्हे लिखना चाहती हूँ!
कभी कोहनी ,बिस्तर पर जमाए
हाथों को,गालों पर टिकाए
अपलक तुम्हें देखना चाहती हूँ
कविता सी तुम्हें
महसूस करना चाहती हूँ!
कभी सीने पर
यूँ ही रख
अपनी धड़कन
सुनाना चाहती हूँ!
आँखे बंद हो मेरी
पर तुम्हारे शब्दों पर
मुस्कुराना चाहती हूँ!
न किसी आहट पर
तकिये के नीचे, तुम्हे
छुपाना चाहती हूँ
न जिल्द लगाकर
दुनियाँ की नज़रों से
बचाना चाहती हूँ
तुम शब्द मेरे
तुम्हे दुनियाँ के सामने
लाना चाहती हूँ!
नहीं रखना चाहती
कोई फूल
उस किताब में
जो सूख मुरझा जाये
पुरानी बातों का
एहसास कराए
मैं तो नित नूतन
तुम्हें, कागज़ की खुश्बू सी
महसूस करना चाहती हूँ!
लिख जाना चाहती हूँ
हर एहसास
हर लम्हा
में तुम्हे
कभी छंद बनाकर
गुनगुनाना चाहती हूँ
कभी कहानी में
खो जाना चाहती हूँ
किताब सी तुम्हे
संभालना चाहती हूँ
अपना प्रेम मुखरित
करना चाहती हूँ!!!!
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