Thursday, 21 September 2017

हिन्दी

लहज़ा हूँ,ज़ुबान हूँ मैं
प्राकृत-संस्कृत ज़े निकली
मिटटी की गुमान हूँ मैं
गंग-यमुनी सभ्यता से बहती
लिपि देवनागरी जिसकी
वो हिंदुस्तान की पहचान हूँ मैं!
न तुम मुझे एक विषय से बांधो
बस,मेरी मूल्य तुम आंको!
विद्वानों की विद्वता हूँ मैं
व्याकरण की संचिता हूँ मैं!
राष्ट्र भाषा हूँ मैं
करोड़ो की मातृ भाषा हूँ मैं
अपने वजूद को न
होते देखूँ लुप्त
वो अभिलाषा हूँ मैं!
सजे जो भाल पर हिन्द के
वो बिंदी हूँ मैं
हिंदुस्तान की हिंदी
हूँ मैं!
संभालो मुझे किसी धरोहर सी
भाषा की विनती हूँ मैं
हिन्दी हूँ मैं
हिंदी हूँ मैं!!!!

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