Wednesday, 20 September 2017

खामोश कविता

शब्द नहीं मिल रहे
कुछ लिखने को
शायद आज कविता
आराम करना चाहती है
कुछ विश्राम करना चाहती है

थक गयी है लिखकर
चाँद, तारों, फूल,पत्तियों पर
कुछ अनकहे को
कहने की कोशिश पर
संजो कर बस भावों को
उनमें खोना चाहती है
आज शायद कविता
आराम करना चाहती है।

कोई गाता ,कोई उसे गुनगुनाता है
कोई उससे सुख,दर्द बताता है
आँसुओं को शब्दों में लिखता कोई
कोई प्रणय गीत सुनाता है
सब दुःख सुख को
अपने में जज्ब करना चाहती है
आज कविता खामोश रहना चाहती है।

होती होंगी उसको भी
परेशानियाँ कितनी
मन में हैरानियाँ कितनी
नपे-तुले शब्दों में
बंधकर रहती है
नहीं कहानी की तरह
बहुत से पात्रों में बसती है
बंधनों से कुछ देर
उन्मुक्त होना चाहती है!
आज कविता शायद
कहानी सी बन
 जाना चाहती है
कल्पना से हटकर शायद
अपना कोई कोना चाहती है!
चुप है,खामोश है
बस शब्दों को परखना चाहती है
आज कविता बस
 आराम करना चाहती है
कुछ खामोश रहना चाहती है......


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