कलम और करछी
में हुई लड़ाई
कलम ने ललकारा
करछी को
करछी भी जोर से चिल्लाई!
कहना कलम का था
क्यूँ तेज़ आँच पर
अपने तेवर दिखाती हो
हिलती डुलती
अपने में ही
व्यस्त मन को रखती हो
पकती रहती सारी कल्पनाये
गल जाते सारे शब्द
करछी हिला थक जाते हाथ
फिर कैसे दे वो मेरा साथ?
फिर हो जाता हूँ
मैं भी मौन ,निशब्द
जब नहीं मिल पाता
किसी की भावनाओं
को शब्द
करछी धीरे से मुस्काई
कहा -वाह कलम
क्या यही सोच
मन में आयी!
कलम पकड़ने से किसी का
परिवार नहीं चलता
भूखे पेट तो शब्द भी
नहीं मचलता
कलम से हैं
शब्द ज़िन्दा
पर करछी चलाकर
जठराग्नि जलता
क्या कर सकता है
तू इंकार इससे
निकाल अपनी महत्ता का
वहम दिल से!
नीन्द से उठी
मैं कुछ घबराई
कुछ सकपकाई
ये थी किसकी आवाज़
क्या मैं ही थी चिल्लाई?
ये सपना था
या सत्य वाकई?
मन ही मन
कलम और करछी
की लड़ाई से
जूझ रही थी
दोनों के पहलू
बूझ रही थी!
यही निकाला निष्कर्ष
जो था मन का संघर्ष
कलम और करछी
का होना होगा संतुलन
तभी तृप्त होगा ये मन
न कलम पर करछी भारी
न करछी कलम पर हावी
दोनों के संतुलन से ही
चलेगी मेरी जीवन गाड़ी.....
में हुई लड़ाई
कलम ने ललकारा
करछी को
करछी भी जोर से चिल्लाई!
कहना कलम का था
क्यूँ तेज़ आँच पर
अपने तेवर दिखाती हो
हिलती डुलती
अपने में ही
व्यस्त मन को रखती हो
पकती रहती सारी कल्पनाये
गल जाते सारे शब्द
करछी हिला थक जाते हाथ
फिर कैसे दे वो मेरा साथ?
फिर हो जाता हूँ
मैं भी मौन ,निशब्द
जब नहीं मिल पाता
किसी की भावनाओं
को शब्द
करछी धीरे से मुस्काई
कहा -वाह कलम
क्या यही सोच
मन में आयी!
कलम पकड़ने से किसी का
परिवार नहीं चलता
भूखे पेट तो शब्द भी
नहीं मचलता
कलम से हैं
शब्द ज़िन्दा
पर करछी चलाकर
जठराग्नि जलता
क्या कर सकता है
तू इंकार इससे
निकाल अपनी महत्ता का
वहम दिल से!
नीन्द से उठी
मैं कुछ घबराई
कुछ सकपकाई
ये थी किसकी आवाज़
क्या मैं ही थी चिल्लाई?
ये सपना था
या सत्य वाकई?
मन ही मन
कलम और करछी
की लड़ाई से
जूझ रही थी
दोनों के पहलू
बूझ रही थी!
यही निकाला निष्कर्ष
जो था मन का संघर्ष
कलम और करछी
का होना होगा संतुलन
तभी तृप्त होगा ये मन
न कलम पर करछी भारी
न करछी कलम पर हावी
दोनों के संतुलन से ही
चलेगी मेरी जीवन गाड़ी.....
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