Friday, 6 November 2020

दीवाली

 सुनो

दिवाली की सफाई कर लो

हाँ, 

करनी है अबकी जमकर।


सबसे पहले, खूंटी पर टंगी

वो पोटली फेंकूँगी

जिसमें मेरी कितनी अनचाही " हाँ" बँधी है।

हाँ, वही कोने वाली,

खूँटी पर टंगी पोटली!


हर बात  में " हाँ " करके

देखो न कितनी,

 "हाँ" इकट्ठी हो रखी  है!

बेफजूल, बेदिल,बेमानी वाली।


अबसे कुछ अपनी पसंद की

" हाँ" इकट्ठी करूँगी

और रखूँगी सजाकर,

जहाँ से दिखाई दे,

सबको मेरी " हाँ"।


अपनी ख्वाहिशों को नहीं छुपाऊँगी

किसी अखबार या अलमारी में,

सबसे नीचे

करीने से सजाऊँगी,

बैठक वाली अलमारी में,

रखूँगी सबके बीच।


अबकी दीवाली बहुत कुछ करना है,

बरसों से परत दर परत

जमी औरों की सोच को

"सेल्फ थिंकिंग" वाली लोशन से

साफ करना है।


सोच रही हूँ

"लोग क्या कहेंगे " वाली पोस्टर भी

घर से निकाल दूँ!

बहुत साल ,देख लिया इसे


वो जो मेरी ज़ोर से

 हँसने वाली आदत

बंद पड़ी न, घर में कहीं

उसे ज़रा बाहर निकाल लूँ!


अब भी वैसी ही चमकती है

बिल्कुल नई जैसी,

क्यूँ न उसे दीवार पर, टाँग दूँ?


देखो न

उम्र की गोधूलि हो चली है

जो भी बची साँझ है,

क्यूँ न उनमें ख्वाहिशों की

अवलि लगा लूँ?

प्रज्वलित कर उन्हें,

अपने मन की दीवाली मना लूँ!

अपने मन की दीवाली मना लूँ!










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