Tuesday, 22 September 2020

उमस

 जब

सावन मास सा उमस

दिल में उतर आता है,

पसीने से लथपथ 

बेचैन भाव

ठंढक की खोज में

पसर जाते हैं

निर्वस्त्र

सामने रखे कागज़ों पर।


कलम सोख लेता है

दिल की सारी नमी

बिल्कुल वैसे ही, जैसे

बंद उमस भरे, कमरे से

ए. सी सोख लेता है

अंदर का ताप,  उमस,

और

निकाल फेंकता है पानी बनाकर।


कागज़ पर पड़े शब्द

सकून  से मुस्कुराते हैं

उमस से छुटकारा पाकर,

पानी बनकर !

वो पानी जिसे 

सिर्फ मेरी परवाह है

सिर्फ मुझसे सरोकार

बाकियों के लिए 

बेकार....

©अनुपमा झा

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