Friday, 4 September 2020

तर्पण

 मृत्यु,

एक शाश्वत सत्य है,

समय रुकता नहीं,

वक्त थमता नहीं,

सब जानती हूँ!

पर खुद को

समझा नहीं पायी 

आजतक!


पाँच साल  होने को आ रहा

पर आज भी, आपको याद कर

दिल रोज़ कुम्हलाता है।

"नही हो आप"

कितनी बार खुद को

समझाती हूँ

पर नहीं समझ पाती हूँ।


सुना यही है बचपन से

अपनों से मिलने पितर हमारे

स्वर्गलोक से आते हैं,

अपनों से श्राद्ध ग्रहण कर 

आशीष हमें दे जाते हैं!

आदित्य,रुद्र,वसु यह तीन

श्राद्ध के देव कहलाते हैं!

हुए संतुष्ट अगर वो

फिर पितर मुक्ति पाते हैं!


नहीं विरोध इन बातों से

पर ,आना आपका 

बस एक बार?

नहीं स्वीकार पाती हूँ।

हर वक़्त इर्दगिर्द आपको, 

मैं संग अपने, पाती हूँ।

हर  रचना अपनी

समर्पित आपको कर जाती हूँ।

प्रतिक्रिया पहली, आपकी चाहती हूँ।

पर

गलतियों और शाबाशी 

के प्रतीक्षा में 

अब बस

शून्य ताका करती हूँ।

स्पर्श आपका माथे पर

अब भी महसूस 

किया करती हूँ!


चल रहा पितरों का,

हमारे अपनों का

श्राद्ध - तर्पण,

बिन जल,कुश तिल

कर रही मैं

अपनी संवेदनाये,

अपनी लेखनी

आपको अर्पण!

बेटी का आपके

बस यही तर्पण

बस यही तर्पण......







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