Tuesday, 8 September 2020

वहम

 वहमी हूँ मैं

हाँ, वहम पाल रखा है,

तुम्हारे होने का,

होता है एहसास,

तुम्हारे शब्दों का,

तुम्हारे छुअन का,

जो कहा नहीं तुमने

उन बातों को सुनने का,

और खुद,मुस्कुराने का

पता है लाईलाज है यह मर्ज़

कल्पनाओं की अद्भुत दुनियाँ में 

एकांत में

तुमसे वो सब कह देना

जो कभी न कह पाई

सब कितना सहज हो जाता है

इस मर्ज़ में!

पर जानती हूँ

और मानती हूँ

कुछ भी अकारण नही होता

इस ब्रह्मांड में।

इस वहम में भी

प्रजनन का बीज 

 होता है छुपा।

प्रसव की पीड़ा लिए

पैदा हो जाती हैं कुछ कविताएँ

कुछ हँसती, खेलती हैं

कुछ छुप या मर जाती हैं....

किसी के पढ़े जाने के डर से...

©अनुपमा झा

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