Tuesday, 8 September 2020

सुंदर काली स्त्री

 जरूरी नहीं

सब गोरी स्त्री सुंदर हो

कुछ काली भी होती है

मन के मिट्टी पर 

कल्पना के कपास उगाती है,

और

उड़ा देती है

अपने शब्दों को

फाहे में संभाल

आसमां की ओर

कभी 

संभाल लेता है आसमां

उन वजूदों को

कभी

 बरस भी जाता है

 आदतन

और फिर 

दब जाती हैं

हो जाती हैं भारी

वो सुंदर ,काली स्त्री.....



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