क्या खेलूँ मैं होली
हो ली मैं तो कान्हा की
रंगी हूँ उसके प्रेम रंग
चढे न मोहे कोई दूजा रंग
कौन सा रंग लगाऊँ अंग?
सखी सहेली हैं सब संग
हँसी, ठिठोली करे हैं सब
चित्त न कुछ लगे है अब
पीत की प्रीत लगे है जब
मन है रंगा ,श्याम रंग
भाव हो रहे सतरंग
ओ अली, अलि सी गुंजन करे है मन
फाग का रंग जलाए तन
क्या खेलूँ मैं होली?
मैं तो मन मोहन की हो ली
मैं तो साँवरे की हो ली......
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