Tuesday, 8 September 2020

होली

 क्या खेलूँ मैं होली

हो ली मैं तो कान्हा की

रंगी हूँ उसके प्रेम रंग

चढे न मोहे कोई दूजा रंग

कौन सा रंग लगाऊँ अंग?

सखी सहेली हैं सब संग

हँसी, ठिठोली करे हैं सब

चित्त न कुछ लगे है अब

पीत की प्रीत लगे है जब

मन है रंगा ,श्याम रंग

भाव हो रहे सतरंग

ओ अली, अलि सी गुंजन करे है मन

फाग का रंग जलाए तन

क्या खेलूँ मैं होली?

मैं तो मन मोहन की हो ली

मैं तो साँवरे की हो ली......

No comments:

Post a Comment