प्रेम
वो नहीं जानती
किसी गुलज़ार या अमृता को
ना ही सुने, पढ़े हैं उसने
ग़ालिब या मीर के शेर
नहीं जानती वो बयाँ करना
मुहब्बत को किसी अल्फ़ाज़ में
वो बस चाहती है जीना
मुहब्बत से मुहब्बत के लिए।
देखा है उसने सिनेमा में
मुहब्बत के कई रंगों को
पर कल्पना की उड़ान भर
ईंट, पत्थरों को ढोते उसके हाथ
बस देखते हैं उन
ईंटो से घर बनाते उन हाथों को
और हो जाती है
वो आश्वस्त अपनी
छत के लिए।
उसकी बड़ी-बड़ी निश्छल आँखें
ढूँढती हैं बहाने
ईंटो के लेन देन में
छूने को उसके हाथ
और छूकर उन्हें
वो ढूंढ लेती है
प्रेम के लिए एक ठोस सतह।
हरे-भरे खेतों से गुज़रते
पतली सी पगडंडी में
अठरंगी सपने देखती
वो लड़की करती है
उस मजबूत हाथ वाले लड़के का इंतज़ार
जिसने कोई वादा नहीं किया
न दिया तोहफे में कुछ
अपनी मुस्कानों के आश्वासन के सिवा....
पर वो लड़की जानती है
और करती है, उन आँखों का भरोसा
जो उस लड़के के हाथ के
पकड़ सी मजबूत है।
और यकीन है उसे
प्रेम में यही,
सबसे ज्यादा ज़रूरी है.....
किसी लिखित अनुबंध से ज्यादा....
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