Monday, 7 September 2020

इंतज़ार

 मन का आँगन ,लीपे बैठी हूँ

देहरी पर दीप जलाये बैठी हूँ।


उम्मीद वाली जुगनुओं को

आँखों में सजाए बैठी हूँ।


उमस भरे दिवस के अवसान पर

बावली हवाओं को संभाले बैठी हूँ।


नेह सागर से कितने ही

यादों के सीप बटोरे बैठी हूँ।


आ जाओ अब कि मरु में

गुलमोहर,अमलतास के रंग लिए बैठी हूँ।

©Anupama Jha


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