अजब गज़ब होती हैं
गाँव वाली कुछ औरतें!
सभ्यताओं, परंपराओं की बेड़ियों में भी,
निकाल लेती हैं कुछ जुगाड़
और हो लेती हैं खुश...
ख़्वाहिशों की पोटली में
लगा किस्मत की गाँठ
कर लेती हैं मन में मन से
कुछ अपनी साँठ गाँठ..
फिल्मी गाने गुनगुनाने से
मानी जाती हैं जो असभ्य
ज़ोर ज़ोर से गा लेती हैं
भक्ति भजन के गीत
उन्हीं फिल्मी धुनों पर..
और कर लेती हैं
कुछ मनमानी!
देहरी से बाहर निकलने पर
लगता है जिनपर उच्छृंखलता का तगमा
ईश्वर की छत्रछाया में
ढूंढ लेती हैं वो
देहरी से बाहर की दुनियाँ!
मंदिरों में घूम आती हैं,
मन्नत के धागे बांध आती है,
वापस आकर खोलने को ...
अचार,पापड़,बड़ियों को
धूप दिखाती, संभाल लेती है
साल भर के लिए
अपने मन की तरह बंद कर लेती है
फफूँद लगने से बचा लेती है।
लगा आती हैं गुहार
ईश्वर के सामने धूप,धान, बारिश का
अपने सूखे पड़े मन के ख़्वाहिशों का
दूर शहर में कमाते पति के आयु का।
बहुत अज़ब गज़ब लगती हैं
मुझे ये औरतें
नहीं भूलती ये लगाना
सावन में मेहँदी
रोज़ भरना मांग में सिंदूर
और लगाना माथे पर बिंदी
बस अपने अस्तिव को भूल
सब याद रखती हैं
कुछ नहीं भूलती ये अज़ब गज़ब औरतें
अपनी ज़िन्दगी को अपने तरीके से
जीने का जुगाड़ लगाती
ये औरतें......
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