Tuesday, 8 September 2020

शायद

 **शायद**


 कुछ अनकहे शब्दों में

कुछ अधूरे छन्दों में

कुछ अधूरे से सवाल में

कुछ उलझे से ख्याल में

तुम्हारे पुराने घर की दीवारों में

टिमटिमाते सितारों में

रतजगे के आलिंगन में

मासूम से चुम्बन में,

बंद पड़े लिफाफों में

खत के अल्फ़ाज़ों में,

किसी डायरी के पन्नों में

फँसी हूँ कुछ हर्फों में,

साथ सुने गीत में

यादों के मधुर संगीत में,

तुम्हारे अच्छे, बुरे ख़्वाबों में

तुम्हारी शहर की हवाओं में

तुम्हारी आस्था और विश्वास में

तुम्हारी चढ़ती, उतरती श्वास में

तुम्हारी दर्द भरी मुस्कान में

तुम्हारी अपनी पहचान में,

तुम्हारे नेह के गुमान में

शायद

मैं अब भी बाकी हूँ 

तुम में कहीं

शायद!!!


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