Tuesday, 8 September 2020

समीकरण

 प्रेम में पड़ी लडक़ी

नहीं देखना चाहती जीवन में

किसी तरह की विषमता।

ज़िन्दगी को जीना चाहती है

कविताओं के समीकरण से।

भागती हैं दूर गणित से,

नहीं भाता उसे

घटाव,भाग करना प्रेम में।

दो समानांतर रेखाओ के बीच

चलती दो ज़िन्दगियों को भी

समझ लेती है एक!

और कर बैठती हैं उम्मीद 

एक बिंदु पर,मिलने की।

चार हथेलियों की रेखाओं को

गिनती हैं एक

और,करने लगती है

अपने प्रेम को गुणित - एक से।

ज्यामितिय आकारों में भी

ढूंढ लेती हैं, प्रेम के आकार

और घूमती रहती हैं

 वृत की परिधि पर,

कुछ सपने संजोकर।

पर घूमती परिस्थितियों की परिधि पर

यथार्थ का जीवन प्रश्न देख

गणित से भागने वाली लड़की

सारे असमानताओं वाले

समीकरण सुलझा लेती है

आरे,तिरछे रिश्तों की रेखाओं को

जोड़,घटाव,गुणा,भाग से

हल कर जीवन का

शेषफल निकाल लेती है....

© अनुपमा झा

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