#पर्यावरण #पर्यावरणदिवस
1*पेड़*
मत काटो मुझे
मत काटो मेरी बाहें
मेरी डालो को,
जटा बन आये
मेरे जड़ बालों को
बैठो,खेलो,कूदो
बाहों पर मेरे लगा लो झूले
बैठ जिसमे आसमाँ तू छू ले
ताज़ी हवा के घूँट कुछ भर ले
जी ले,बचपन,लड़कपन, जवानी
बुढापा,सब मेरे संग
लगने दो चौपाल
मेरे छाँव तले
देखो, न यहाँ
किसी का तन जले!
बनने दो घोंसला
सुनो तुम भी कलरव
न बनने दो,
वृक्ष बिन,यह जग नीरव
2 *हवा*
सुवासित बयार था मैं
स्वतंत्र, स्वछंद
अल्हड़,मगन,मस्त
खुश्बू लेकर आता था
मौसम का हाल सुनाता था
हर मौसम की
अपनी खुशबू थी
हर मौसम की
अपनी मौसिकी थी।
जाने कहाँ खो गयी
कंक्रीट जंगलों में
वसंत भी कहीं छुप गयी
3*नदियाँ*
सदियों से बहती आयी हूँ
युगों युगों से प्यास बुझाती आयी हूँ
पूजिता रही सदैव
पीड़िता बन बैठा हूँ।
बना दिया मुझे
गंदे निष्कासन का गर्भ
बस होती हैं बातें
बड़ी बड़ी इस संदर्भ
खत्म होने के कगार पर हूँ
माँग रही सबसे भिक्षा
कर लो जल संरक्षण
बस यही मेरी छोटी सी
तुम मनुष्यों से अपेक्षा।
4*पहाड़*
ऊँचा, महान,विशाल
यही थी मेरी पहचान
आधुनिकता की होड़ में
गुम हो रहा अस्तित्व मेरा
न कोई कर रहा मेरा सम्मान।
काट ,गिरा,ध्वस्त
दिखा रहे,प्रगति का ज्ञान
दुखी है तुम सबसे
ये पर्यावरण
सुन ले ए इंसान।
5*इंसान*
मूर्त बना सब देख रहा
पर्यावरण का हाल
एक दूजे को देकर दोष
आधुनिकता की होड़ में
हो रहा खुशहाल।
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