Monday, 31 July 2023

क्षणिकाएँ

 क्षणिकाएं

(1)

जिंदगी

नौ से पांच वाली ऑफिस की फाइल

जो करती  रहती अपनी यात्रा

साल दर साल

एक मेज़ से दूसरी मेज़ तक

और कभी भी हो जाती है बंद

बिना किसी निष्कर्ष के।


(२)

जिन्दगी 

एक ऐसी किताब

जिसके हर किरदार से

वाकिफ होते हैं हम

और न चाहते हुए भी

पलटते रहते हैं,

उस  किताब के पन्ने

एक नए नजरिए ,से समझने को।


(३)


जिंदगी 

किसी और के चलाए

 लूप पर चलती 

एक गाने की तरह।


(४)

जिंदगी

हर कोई साधता है 

जिसके सुर

अपने लय ताल में

सरगम से बेखबर 

अपने अंतरे और मुखड़े के संग।


(५)

जिंदगी 

कभी मीठी  कविता या गजल सी

पूरी मुकम्मल

और कभी

बिना छंद और बहर वाली

 आलोचनाओं और प्रश्नचिन्हों 

के दायरे में कैद।

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