Monday, 31 July 2023

 तुम छूट रहे मुझसे

वैसे ही जैसे 

छूट रहे हमसे

हमारे तत्सम शब्द ।


यादें तुम्हारी

भारी ,भरकम लुप्तप्राय शब्दों जैसे

बस अंतस की डिक्शनरी में 

बंद हैं कहीं।


सालों के फासलों ने

मीठे देशज शब्दों से, रिश्तों को

विदेशज शब्दों की

मुहर लगा दी है ।


चाह कर भी

नहीं आता वो नाम

जिसके उच्चारण मात्र से

भाषा की क्लिष्टता का भान हो।


मेरे भाव भी 

मेरी भाषा की तरह

 मिश्रित होकर

कहीं के न रहे।


पर,  वो हृदय के 

ताम्र पत्र पर उकेरे गए

कुछ अभिव्यक्ति 

आज भी महफूज़ है

किसी इतिहास के धरोहर की तरह


जिसे, लिखा गया था

भाषा के व्याकरण से पहले

नेह की लिपि में

प्रेम की विधा में।

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