एक उदास जजीरा,
रॉस
सालों से लगाए ,टकटकी
हर आने जाने वाले को
अपने अतीत की,
अपने यौवन की
दास्तां सुनाता मिलता
कुछ शर्मसार सा ।
हमवतनों के
गुलामी के खून पसीने से
सने हाथों से सजा ,
चीख चीख कर
अपने वजूद की दे रहा गवाही
खुद ही साक्ष्य और साक्षी बनकर
जिसे अपने अय्याशी के लिए
रौंदा गया, बसाया गया।
लाखो गुमनाम चेहरों
के आंसुओं का सैलाब
घुल मिल गए
इस जजीरें के संग।
और यह जजीरा
सब कुछ सहते हुए
फला, फूला ,
हँसा, बसा
और आज
खंडहर बनकर भी
कर रहा है कोशिश
मुकुराने की।
अपने अतीत को
याद करता,भूलता कभी
उन दरख्तों को ,
गले लगाता , चूमता कभी
जिनके साथ
जिया है उसने हर वो लम्हा
एक जजीरे को
शहर बनाकर ।
और शायद ये सोचकर कि
दुआओ के संग
बददुआएं भी रंग लाती है,
असर दिखाती है।
अनुपमा झा
#rossisland
#andaman
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