Monday, 31 July 2023

#क्षणिकाएँ

 #क्षणिकाएँ 


(1)

मुझसे कहा गया 

मौन रहो

और मैंने 

लिखी कुछ कविताएँ।


(2)

मौन से ज्यादा 

वाचाल

मैने कुछ नहीं

देखा।


(3)

मुझे कहा गया

बनाओ 

अपनी कविता का चित्र

और मैंने बनाया

पिंजरे से भागी

उड़ती चिड़िया ।


(4)

अनकहे शब्दों में

छुपी होती हैं

वो सब बातें

जो बस आँखो से

देखी, पढ़ी, सुनी 

जाती है।


(5)

दिल टूटने पर

अच्छा भी होता है

जैसे बारिश के बाद 

निकला इंद्रधनुष ।


(6)

कोरे कागज

पतझड़ के मौसम 

के पेड़ से होते हैं

जिनपर लिखने के साथ

आ जाता है बसंत।


(7)

भावों की

अधिकता हो

या शून्यता

घेर लेते हैं

बहुत सारी जगह

दिलों दिमाग में ।


(8)

दुख को अगर

रंग सकते तो

मंदिर से ज्यादा भीड़

रंगरेज की दुकान

पर होती।


(9)

महुए के फूल सा

नाजुक है प्रेम

संभाल कर उठाना ,

रखना और संजोना 

पड़ता है

ताकि बना रहे उसका

मद और माधुर्य ।


-अनुपमा झा

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