पिछली पीढियों की
जिन स्त्रियों ने
जाने अंजाने सुना
क्या कर लोगी
ज्यादा पढ़कर?
कलेक्टर बनोगी?
सुनो लड़कियों
पुरूष के दिल का रास्ता
जाता है होकर पेट से!
आँखे गड़ाकर, दिमाग खपाकर
कितना भी पढ़ लो
कुछ काम नहीं आएगा, ये
ज्यामितीय परिमेय ।
पर रोटी अगर गोल नहीं बनी
तो तंज में तनिक भी
न बख्शा जाएगा ,तुम्हे।
वृताकार गृहस्थी में
तुम्हें गोल गोल घुमना है
ताउम्र।
रोटी का जुगाड करना
है काम पुरुषो का,
मत डालो उनमें
अपने सपनों का खलल
मत देखो सपने,
अंतरिक्ष में भरने के उड़ान
और कसी कमीज पतलून पहन
लेफ्ट राइट करने के ख्वाब,
हवाई किला बना सकती है
हम औरते
हवाई जहाज उड़ाना
हमारे बस में नहीं।
साधो अपने मन को
और विकसित करो
सुघड़ गृहणी बनने के गुण।
बीता समय
सब चुपचाप सुन
होनी से कर समझौता
बांध लिया दुपट्टे और साड़ी के कोने से,
अपने सपनों को
पिछली पीढियों की स्त्रियों ने
और
और उस गांठ को खोला
अपनी बेटियों के लिए,
उड़ने दिया उन्हें स्वतंत्र
पंखों को उनके
अपने सपनो से किया
और मजबूत
और कहा
चल बेटी ,कदम से कदम
मिलाकर उनके साथ
जो पितृ सत्ता का तगमा लगाकर
उड़ने , दौड़ने , अंतरिक्ष में विचरने
का दंभ रखते हैं।
और हां
कलेक्टर तो जरूर बनना
क्योंकि पता नही
क्या छिपा है इस पदवी में
जिसके तानों से
छलनी होती आई है
कितनी ही स्त्री
हमारी पीढ़ी और हमसे
पहले वाली पीढ़ियों में।
जिसकी जिम्मेदार
पुरूष ही नहीं
वो स्त्रियां भी रही
जिन्होंने बेटी जनने के बाद
उदास मन से
हर बार कहा
बेटी हुई है।
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