तप्त ,प्यासी धरा को
अपनी बूंदों से
सहलाता सावन,
सूखे शाखों को भी
सब्ज बनाता सावन
न जाने
क्यूं नहीं बना पाया
मेरे अंतस को
हरा भरा
तुम्हारे जाने के बाद ?
यादें दब जाती हैं
कहीं गहरे,
जीवन की आपा धापी में
कहीं
फिर से हरा-भरा होने को,
किसी सावन के इंतजार में ,
शायद!
शायद
किसी सावन के इंतजार में ,
उगती रहती हैं,
अजर-अमर
कोमल कोपलें,
अकुलाती रहती है
पल्लवित ,
पुष्पित होने को,
खारे पानी से
सींचे नेह की जड़ें,
और,
बस
फैलती जाती हैं जड़ें
नेह के पन्नों पर
कभी अक्षर
कभी शब्द
और
कभी कविता बनकर !
जैसे ,
सावन की खिल्ली उड़ाते,
कहती हो
सब हरा नहीं होता
सावन में
पर
रंग बेरंग होकर भी
प्यार के सतरंगी पन्ने कुछ,
बुला लेते
सावनी घटा,
और
बचाए रखते हैं
प्रेम को
फूलों की सी
खुशबू लिए
सावन-सी हरियाली लिए ।
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