#मैथिली #कविता
#सोचू
जहियासँ भेल शहर आबाद
बंद भेल, बोनक संगे मानवक संवाद
गाछ वृक्ष सभ कटि रहल सगरो
के’ सुनत ,चिड़ै-चुनमुनक फरियाद।
अछि उगैत नव नस्लक फल-फसल
द' कए बस अगबे खादे खाद
कोना क' लेतै ओ साँस
धरतीक भेलै दोहन,उर्वरता बर्बाद
प्लास्टिकसँ सभ पाटि देलक
नदी,समुन्दर ,भूमि, पहाड़
ओतहु तं हम बना देलहुँ
मॉल ,होटल आ बाजार।
सोचै छी, होए छी खूब प्रसन्न
ई हम भेलहुँ केहन आबाद
सूखा रहल अछि पोखरि-इनार
नहि भ’ रहलैए ओकरा लेल कोनो संवाद ।
की भेटल, की हानि भेल
मनहिं करू किछु सोच,
चेतू एखनो अछि समय
लुटि कए, देबै ककरा दोष!
©अनुपमा झा
( बहुत हितैषी ,मित्र मैथिली में लिखै लेल प्रोत्साहित क रहल छैथ। कोशिश क रहल छी। छोट सन कोशिश हमर 🙏)
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