* क्षणिकाएँ *
(1)
दुनियाँ की नज़रों में
घर का हिसाब रखनेवाली औरतें
हमेशा रहीं हैं ऊपर
अपनी खुशियों का हिसाब
रखने वाली औरतों से।
(2)
दुनियाँ की नज़रों में
अपने सपनों को, बस
रातों में चुपके से देखने वाली औरतें
की जाती रहीं हैं सराहित
उनके मुकाबले जो
जीती हैं अपने सपनों को ।
(3)
पुरुषों से बराबरी करने वाली औरतें
बददिमाग,बदतमीज होती हैं
सिर्फ पुरुषों के नज़रों में नहीं
कई स्त्रियों की नज़रों में भी।
(4)
पुरुष वर्ग के भद्दे मज़ाक और
हँसी ठिठोली के नाम पर
हास्य, व्यंगों से प्रतारित की जाती
औरतें, सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाये
तो कहलाती हैं संस्कारी,
और पलटकर उसी लहज़े में
जवाब देने वालो को,दिया जाता है
बेशर्मी का तमगा।
(5)
औरतों के उठते सवालिया नज़रों को
दोहरी मानसिकता से हमेशा
किया गया नज़रंदाज़
जिसे देख, सुन
बस चुप्पी लगा जाना
हो गया है शुमार
औरतों की आदतों में।
(6)
खुद की ख़ुशी की खुदकशी
करने वाली औरतें रही हैं प्रशंसनीय
बहुतायत की संख्या में ,उनसे
जो देखती हैं खुद की खुशी।
(7)
*एकला चलो रे *
के राग को गा तो सकती हैं
हम औरते पर ..
अमल में लाने वाली औरतें
नहीं मानी जाती अच्छी।
©अनुपमा झा
4/6/21
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